
इसराइल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतेमार बेन-ग्वेर द्वारा यरूशलम के अल-अक्सा मस्जिद परिसर में की गई यात्रा ने एक बार फिर मध्य पूर्व में आस्था और राजनीति को टकराव के मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है।
इस्लाम के तीसरे सबसे पवित्र स्थल पर इस प्रकार की ‘यहूदी प्रार्थना सभा’ ने स्थानीय और वैश्विक प्रतिक्रियाओं को भड़का दिया है।
पाकिस्तान ने जताई सख्त आपत्ति
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने एक्स (Twitter) पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा:
“पाकिस्तान, इसराइली पुलिस की सुरक्षा में वहां के मंत्रियों और सेटलर्स द्वारा अल-अक्सा मस्जिद की यात्रा की निंदा करता है।”
उन्होंने इसे “1 अरब से ज़्यादा मुसलमानों की आस्था का अपमान” और “मानवता तथा अंतरराष्ट्रीय क़ानून पर सीधा हमला” बताया।
“जानबूझकर तनाव बढ़ा रहा है इसराइल” – शहबाज़ शरीफ़
शरीफ़ ने बेन-ग्वेर की इस यात्रा को “शर्मनाक और उकसावे” वाली कार्रवाई बताया, जो उनके मुताबिक, मध्य पूर्व में और अस्थिरता फैलाने की एक रणनीति है।
“इसराइल की शर्मनाक हरकतें जानबूझकर फ़लस्तीनी क्षेत्र में तनाव बढ़ा रही हैं।”
समझौते की अवहेलना?
इस यात्रा की एक और खास बात है कि यह उस ऐतिहासिक यथास्थिति का उल्लंघन माना जा रहा है, जिसके तहत:
-
यहूदियों को परिसर में आने की अनुमति है
-
लेकिन प्रार्थना करने की मनाही है
बेन-ग्वेर की यह सार्वजनिक यहूदी प्रार्थना सभा, इस समझौते के विरुद्ध मानी जा रही है।
नेतन्याहू सरकार का ‘Damage Control’
घटनाक्रम के बाद इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के कार्यालय ने बयान जारी कर कहा:
“अल-अक्सा परिसर में यथास्थिति बनी हुई है, और इसराइल की नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है।”
हालांकि, तस्वीरों और वीडियो फुटेज में बेन-ग्वेर को “टेंपल माउंट” पर यहूदी प्रार्थना करते देखा गया, जिससे फिलिस्तीन समर्थक देशों का आक्रोश और बढ़ गया।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं – सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं
इस विवाद पर चरमपंथी समूह हमास और जॉर्डन जैसे खाड़ी देशों ने भी आलोचना की है।
विशेषकर जॉर्डन, जिसे अल-अक्सा परिसर की देखरेख की ऐतिहासिक भूमिका दी गई है, उसने इसे एक “खतरनाक उकसावा” बताया।
आस्था के नाम पर सियासत?
इस पूरी घटना से एक बार फिर सवाल उठता है — क्या पवित्र स्थल सिर्फ इबादत के लिए हैं या राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन का नया मैदान बनते जा रहे हैं?
बेन-ग्वेर जैसे दक्षिणपंथी नेताओं की कार्रवाई, यह संकेत देती है कि यह टकराव अब केवल धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक आक्रामकता का हिस्सा बन गया है।
क्या अल-अक्सा फिर से संघर्ष का केंद्र बनने जा रहा है?
ऐसे में शहबाज़ शरीफ़ का बयान न केवल इस्लामी आस्था का रक्षण है, बल्कि मध्य-पूर्व की स्थिरता की चेतावनी भी। इस विवाद के फैलते ही अल-अक्सा एक बार फिर राजनीतिक बारूद के ढेर पर बैठा प्रतीत होता है।